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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


फिर दरवाजे पर दस्तक हुई। बनवारी और शबनम के शरीर को जैसे किसी विद्युत्-तरंग ने छू दिया। वे तड़पकर एक-दूसरे से और भी सट गए।

शबनम ने उखड़ी हुई आवाज में पूछा-''इतनी रात गए कौन होगा?"

इतने में दुबारा दस्तक हुई।

बनवारी ने बत्ती जला दी। क्राउन होटल का वह अस्त-व्यस्त और गंदा-सा कमरा चमक उठा। शबनम उछलकर अलग हो गई। अपने उतरे हुए कपड़ों से अपना नंगा तन ढांपते हुए वह बालकोनी में खुलने वाले दरवाजे के साथ चिपककर जा खड़ी हुई और तेजी से दरवाजे पर टंगे पर्दे को खींचकर अपने-आपको छिपा लिया।

बनवारी ने शराब की बोतल को, जिसमें कुछ बूंदें अब भी बची हुई थीं, पांव से धकेलकर चारपाई के नीचे कर दिया। घबराकर उसने दरवाजे की ओर देखा और बिस्तर से उठकर उसे खोलने के लिए बढ़ा। एक बार पलटकर उसने उस गंदे पर्दे की ओर भी देख लिया जिसके पीछे शबनम छिपी खड़ी थी और फिर कांपते हाथों से दरवाजा खोल दिया।

किवाड़ खुलते ही उसके मुंह से एक दबी-दबी-सी चीख निकल गई। चेहरे का रंग उड़ गया। उसके सामने दुशाला ओढ़े अंजना खड़ी थी। उखड़े हुए सांसों को संभालते हुए वह अभी कुछ पूछने ही जा रहा था कि अंजना कमरे के भीतर चली आई और बोली :

''मैं आ गई बनवारी!''

उसने एक ओर अपना अटैचीकेस रखा और पलटकर किवाड़ बंद कर दिए। बनवारी फटी-फटी निगाहों से उसे देख रहा था।

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